अध्याय २१
श्रीराधिका सहित पुरुषोत्तम भगवान् को नमस्कार है। यह कह कर आवाहन करे। हे देवदेवेश! हे पुरुषोत्तम! अनेक रत्नों से युक्त अर्थात् जटित और कार्तस्वर (सुवर्ण) से विभूषित इस आसन को ग्रहण करें। इस तरह कह कर आसन समर्पण करे ॥ १३ ॥
गंगादि समस्त तीर्थों से प्रार्थना पूर्वक लाया हुआ यह सुखस्पर्श वाला जल पाद्य के लिये ग्रहण करें। इस प्रकार कह कर पाद्य समर्पण करे ॥ १४ ॥
श्रीराधिकासहितपुरुषोत्तमाय नमः आवाहनं समर्पयामि ॥ इत्यावाहनम् ॥ नानारत्नसमायुक्तंक कार्तस्वरविभूषितम् ॥ आसनं देवदेवेश गृहाण पुरुषोत्तम ॥ १३ ॥
श्रीराधिकासहितपुरुषोत्तमाय नमः आसनं समर्पयामि ॥ गङ्गादिसर्वतीर्थेभ्यो मया प्रार्थनयाऽऽहृतम् ॥ तोयमेतत्सुखस्पर्शं पाद्यार्थं प्रतिगृह्यताम् ॥ १४ ॥
इति पाद्यम् ॥ नन्दगोपगृहे जातो गोपिकानन्दहेतवे ॥ गृहाणार्ध्यं मया दत्तं राधया सहितो हरे ॥ १५ ॥
इत्यर्ध्यम् ॥ गङ्गाजलं समानीतं सुवर्णकलशस्थितम् ॥ आचम्यतां हृषीकेश पुराणपुरुषोत्तम ॥ १६ ॥
इत्याचमनम् ॥ कार्यं मे सिद्धिमायातु पूजिते त्वयि धातरि ॥ पञ्चामृतैर्मयाऽऽनीतै राधिकासहितो हरे ॥ १७ ॥
हे हरे! गोपिकाओं के आनन्द के लिए महाराज नन्द गोप के घर में प्रकट हुए, आप राधिका के सहित मेरे दिये हुए अर्ध्य को ग्रहण करें। यह कह कर अर्ध्य समर्पण करे ॥ १५ ॥
हे हृषीकेश! अर्थात् हे विषयेन्द्रिय के मालिक! हे पुराण-पुरुषोत्तम! अच्छी तरह से लाया गया और सुवर्ण के कलश में स्थित गंगाजल से आप आचमन करें, यह कह कर आचमन समर्पण करे ॥ १६ ॥
हे हरे! मेरे से लाये गये पंचामृत से राधिका के सहित जगत् के धाता आपके पूजित होने पर अर्थात् आपके पूजन से मेरे कार्य सिद्धि को प्राप्त हों ॥ १७ ॥