अध्याय १
वहाँ स्नान करके पवित्र ऋषियों, देवताओं तथा पितरों को तर्पणादि से तृप्त करके तब समस्त प्रतिबन्धों को दूर करने वाली यमुना के तट पर गया ॥ ३५ ॥
फिर क्रम से अन्य तीर्थों को जाकर गंगा तट पर गया। पुनः काशी आकर अनन्तर गयातीर्थ पर जाय ॥ ३६ ॥
स्नात्वा तृप्त्वा ऋषीन् पुण्यान् सुरान् पितृगणाथ ॥ ततः प्रायातो यमुनां प्रतिबन्धविनाशिनीम् ॥ ३५ ॥
क्रमादन्यानि तीर्थानि गत्वा गङ्गामुपागतः ॥ ततः काशीमुपागम्य गयां गत्वा ततः परम् ॥ ३६ ॥
पितॄनिष्ट्वा ततो वेणीं कृष्णां च तदनन्तरम् ॥ ततः स्नात्वा च गण्डक्यां पुलहाश्रममाव्रजम् ॥ ३७ ॥
धेनुमत्यामहं स्नात्वा ततः सारस्वते तटे ॥ त्रिरात्रमुषितो विप्रास्ततो गोदावरीं गतः ॥ ३८ ॥
कृतमालां च कावेरीं निर्विन्ध्यां ताम्रपर्णिकाम् ॥ तापीं वैहायसीं नन्दां नर्मदां शर्मदां गतः ॥ ३९ ॥
पितरों का श्राद्ध कर तब त्रिवेणी पर गया। तदनन्तर कृष्णा के बाद गण्डकी में स्नान कर पुलह ऋषि के आश्रम पर गया ॥ ३७ ॥
धेनुमती में स्नान कर फिर सरस्वती के तीर पर गया, वहाँ हे विप्रो! त्रिरात्रि उपवास कर गोदावरी गया ॥ ३८ ॥
फिर कृतमाला, कावेरी, निर्विन्ध्या, ताम्रपर्णिका, तापी, वैहायसी, नन्दा, नर्मदा, शर्मदा, नदियों पर गया ॥ ३९ ॥